गाजीपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को धामूपुर गांव स्थित शहीद स्मारक में स्थापित परम वीर चक्र से सम्मानित शहीद वीर अब्दुल हमीद के जन्म दिवस पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उन्होंने अब्दुल हमीद के जीवन पर आधारित डा.रामचन्द्रन श्रीनिवासन द्वारा लिखित पुस्तक “मेरे पापा परमवीर” का लोकार्पण भी किया।
शहीद वीर अब्दुल हमीद के बड़े पुत्र जैनुल हसन व परिजनों द्वारा आयोजित तथा कैप्टन मकसूद गाजी की अध्यक्षता में संचालित सभा को मुख्य अतिथि मोहन भागवत ने शहीद स्मारक के गेट पर लिखी पंक्तियों – शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा.. को कोट करते हुए कहा कि वास्तव में शहीद अमर हो जाते हैं। वो बलिदान देते हैं तब अमर होते हैं। वास्तव में शहीद का बलिदान महान होता है। उन्होंने स्वयं के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र की रक्षा में अपना बलिदान दिया और वे अमर हो गये। उनके जीवन पर आधारित यह पुस्तक देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता का भावना का संचार करेगा।
उल्लेखनीय है कि जिले के जखनियां तहसील अन्तर्गत दुल्लहपुर थाना क्षेत्र के धामूपुर गांव के रहने वाले मुहम्मद उस्मान की पत्नी सकीना बेगम ने एक जुलाई 1933 को अब्दुल हमीद को जन्म दिया था। इक्कीस वर्ष की उम्र में अब्दुल हमीद 27 दिसम्बर 1954 को सेना के ग्रेनेडियर इन्फैन्ट्री मे भर्ती हुए थे। वर्ष 1965 के भारत पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना, अमृतसर को पार करके खेमकरन सेक्टर के चिया गांव की ओर बढ़ रही थी। उस समय तक अभेद्य माने जाने वाले अमेरिकी पैटन टैंको से लैस पाकिस्तानी फौज के पैटन टैंक को लक्ष्य कर गोले दागे जिससे पैटन टैंकों की बढ़त थम गयी। जब तक पाकिस्तानी फौज सम्भलती तब तक गाजीपुर की शहीदी धरती के इस लाल ने एक एक कर सात पैटन टैंको की चाल अपने गोलों से रोक दी।
अब्दुल हमीद जब अगले पैटन टैंक को निशाना बना रहे थे तभी पाकिस्तानी तोप के निकले गोले से दस सितम्बर 1965 को वे शहीद हो गये। भारतीय फौज अदम्य साहस व उत्साह से दुश्मन टीम पर टूट पड़ी और पाकिस्तानी फौज को भागना पड़ा। साहस और राष्ट्रीयता के धनी इस महावीर को मरणोपरांत 16 सितम्बर 1965 को भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च सम्मान व मेडल “परमवीर चक्र” से सम्मानित करने की घोषणा की थी और गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति भारत सरकार डा. सर्व पल्ली राधा कृष्णन द्वारा उनकी पत्नी रसूलन बीबी को यह सम्मान प्रदान किया गया था।