प्रदीप शर्मा
गाजीपुर। बीते दिनों प्रयागराज में हुए माफिया अतीक अहमद हत्याकांड की आंच अब स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों को भी अपने चपेट में ले लिया है। इसका सीधा असर ऐसे पत्रकारों पर पड़ रहा है, जो या तो डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म पर पत्रकारिता कर रहे है या तो न्यूज पोर्टल अथवा यूट्यूब पर अपनी स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।
ऐसे में सूचना विभाग गाजीपुर ने नगर निकाय चुनाव के मतदान व मतगणना के कवरेज के लिए न्यूज पोर्टल व अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को प्रेस पास जारी करने से साफ इनकार कर दिया है। जिसे लेकर सूचना विभाग के प्रति जनपद के डिजिटल मीडिया या वेब मीडिया के पत्रकारों में काफी नाराजगी है।
ऐसा प्रतीत होता है मानो योगी सरकार पहले से ही डिजिटल व वेव जर्नलिज्म कर रहे पत्रकारों को दबाने का मन बना चुकी थी। अतीक बंधु हत्याकांड ने उसे एक बहाना दे दिया है। पहले भी सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों का रवैया डिजिटल पत्रकारिता करने वालों के प्रति नकारात्मक ही रहा है।
सूचना विभाग कार्यालय गाजीपुर ने स्पष्ट रूप से कहा कि नगर निकाय चुनाव के लिए सिर्फ टीवी चैनल या आरएनआई (RNI) से पंजीकृत अखबार या मैगजीन के पत्रकारों को ही चुनाव कवरेज के लिए प्रेस पास जारी किया जायेगा।
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों का क्या होगा? क्या सूचना विभाग द्वारा इन्हें फर्जी पत्रकारों की श्रेणी में रखा जाएगा ?
वर्तमान समय में डिजिटल न्यूज प्लेटफार्मों या न्यूज पोर्टल के प्रति पाठकों की रुचि काफी बढ़ गयी है। आज के दौर में हर कोई चाहता है कि वह अपने आस पास या देश प्रदेश की खबरों को तुरंत पढ़ ले, हर कोई चाहता है कि अपने मोबाइल स्क्रीन पर एक क्लिक में वह खबर को पढ़ ले या देख ले, ऐसे में डिजिटल मीडिया के तौर पर न्यूज पोर्टल या यूट्यूब चैनल का महत्व काफी प्रासंगिक हो जाता है। ये माध्यम इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि मुख्य धारा की प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी समाचार पाठकों व दर्शकों को डिजिटल प्लेटफार्म से जुड़ना पड़ रहा है।
पत्रकार बन कर हमला करने का यह पहला मामला नहीं है, माफिया अतीक अहमद हत्यकांड से पूर्व में भी पत्रकार बन कर कई घटनाओं को अंजाम दिया गया है, चाहे वह प्रबुद्ध पत्रकार नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने की घटना हो या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्रकार शिव रासन द्वारा हत्या करने की बात हो। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि माफिया अतीक अहमद हत्याकांड के बाद डिजिटल मीडिया के तौर पर खबरों को प्रमुखता से दिखा रहे अन्य स्वतंत्र पत्रकार संदिग्ध हैं या फर्जी हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार को ऐसे सभी न्यूज पोर्टलों व स्वतंत्र पत्रकारों के लिए कुछ नियम व शर्तों को बनाना चाहिए, जिनका पालन करते हुए डिजिटल मीडिया व स्वतंत्र पत्रकार निर्बाध रूप से अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता सकें।